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इस्लाम में स्वतंत्रता
अल्लाह कहता है । (ولقد كرمنا بني آدم) (الإسراء 70)
और हमने मनुष्यों को सम्मानित किया।
और हमने मनुष्यों को सम्मानित किया।
इस्लाम में स्वतंत्रता की संकल्पना:
इस्लाम ने गुलामी को सख्ती से मना किया और मानव स्वतंत्रता को आमंत्रित किया। मानव जाति में कोई अंतर नहीं है , और इसका एक बेहतर सबूत उमर बिन खत्ताब की प्रसिद्ध कहावत है : आप लोगों को गुलाम बनाना
चाहते हैं, लेकिन उनकी माताओं ने उन्हें स्वतंत्र जन्म दिया है (كتاب الحرية علي محمد محمد الصَّلاَّبي"،) .
इस्लाम में स्वतंत्रता किसे कहते हैं।
· अल्लाह की इबादत - इसका मतलब है किसी भी इंसान, जानवर की पूजा से मुक्त होना, और केवल अल्लाह की इबादत करो ।
· इस्लाम में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की शर्तों में से; एक दूसरों को शारीरिक, नैतिक या आध्यात्मिक रूप से नुकसान पहुंचाना नहीं है।
· आत्मा को संकट में डालना, क्योंकि अल्लाह ने शरीर, मन और आत्मा को नुकसान पहुंचाने वाली हर चीज को मना किया है।
· समाज के नियमों का पालन करना , और इसे तोड़ना जायज नहीं है ताकि समाज में व्यवस्था न हो और उसकी व्यवस्था खराब न हो ।
· इस्लाम के पैगंबर ने फरमाया: («لا ضرَرَ ولا ضِرارَ»)
“ इब्न माजाह ने इस हदीस को सुनाया 2341 ”
अनुवाद : न तो खुद को और न ही किसी और को दुख दो۔
“ इब्न माजाह ने इस हदीस को सुनाया 2341 ”
अनुवाद : न तो खुद को और न ही किसी और को दुख दो۔
Muhammad Raghib
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( सुरा माएदा :आयत- 2)
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मोहर्रम शरिफ मे होने वाले गलत रस्मो रिवाज और जरूरी मसअले मसाईल
मोहर्रम मे होने वाले गलत रसमो रिवाजो को "आला हजरत- ईमाम अहमद रजा खान फाजील ए बरेलवी और दिगर सुन्नी उलेमा ए दिन " ने लिखी हुयी "फतावा ए रजविया" मे तफसील से दिया है.उस मे से चंद फतावे हम सब के इसलाह के लिये...
मसअला
"ताअजिया"ममनूअ है,शरियत मे इसकी कोई असल नही है. ताअजिया बनाना,देखना,चढावा चढाना,निकालना और उसकी किसी अकिदत या कुछ तसव्वूर करके ताअजिम करना सख्त हराम है.
(फतावा रजविया: जि. 24, पेज नं.489,490)
"ताअजिया"ममनूअ है,शरियत मे इसकी कोई असल नही है. ताअजिया बनाना,देखना,चढावा चढाना,निकालना और उसकी किसी अकिदत या कुछ तसव्वूर करके ताअजिम करना सख्त हराम है.
(फतावा रजविया: जि. 24, पेज नं.489,490)
मसाला (ताअजिया वगैरा) काम के लिये किसी किसम की इमदाद जाइज नही
तथा अल्लाह सुबहानहु व तआला का फरमान है :
अनुवाद : नेक और तईवा (परहेज़गार) के काम मै एक दसरे
का सहयोग
कया करो तथा पाप और अत्याचार पर एक दसरे का सहयोग न करो,
﴿ وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلَا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ) [المائدة: 2]
अनुवाद : नेक और तईवा (परहेज़गार) के काम मै एक दसरे
का सहयोग
कया करो तथा पाप और अत्याचार पर एक दसरे का सहयोग न करो,
( सुरा माएदा :आयत- 2)
ढोल ताशे बजाना,गली गली उछलते कुदते माअतम करना ये जाहिलो का और शिया (राफजी) लोगो का तरिका और रशमे है तो ईन से बचे.
ताअजिया कया है?
शिया लोगो के जुलूस मे मकबरा या कब्र के जैसे रंगीन कागज का बनाया जाता है और उस की तआजिम करते और ढोल ताशे बजाकर माअतम करते हुये जुलूस निकालते है जो ईस्लामी शरियत मे सक्त हराम है.
शिया लोगो के जुलूस मे मकबरा या कब्र के जैसे रंगीन कागज का बनाया जाता है और उस की तआजिम करते और ढोल ताशे बजाकर माअतम करते हुये जुलूस निकालते है जो ईस्लामी शरियत मे सक्त हराम है.
[मसअला]
आशराह ए मुहर्रम मे हर मुसलमान को तिन रंगो (काला,हरा और लाल)को पेहन ने से बचे.
(फतावा रजविया: जि. 24, पेज नं.496).
आशराह ए मुहर्रम मे हर मुसलमान को तिन रंगो (काला,हरा और लाल)को पेहन ने से बचे.
(फतावा रजविया: जि. 24, पेज नं.496).
"अय्याम ऐ मुहर्रम" यानी 1 से 12 मुहर्रम तक "काला" रंग ना पेहना जाए क्यू के ये राफझीओ या शिया का तरिका है.
(सुन्नी बहिश्ती जेवर,जिल्द-5 पेज नं:578)
(सुन्नी बहिश्ती जेवर,जिल्द-5 पेज नं:578)
मुहर्रम मे निकाह करने के बारेमे क्या हुकूम है?
"माहे मुहर्रम " मे निकाह करना जाईज है और निकाह करना किसी भी महिने मे मना नही है.
ईमाम हुसैन (रजिअल्लाहू तआला अन्हू) की याद शरियत के दायरे मे रहकर मनाये. उनकी अजीम कुरबानी को खेल-कूद तमाशे का जरिया ना बनाए
मुहर्रम में ढोल ताशा बजाना ,
मातम करना ,
काले कपडे पहनना नाजायज़ और गुनाह के काम है !
( बहारे शरियत )
मातम करना ,
काले कपडे पहनना नाजायज़ और गुनाह के काम है !
( बहारे शरियत )
मुहर्रम में बाजे बजाना ,
हज़रत कासिम की मेहन्दी निकलना ,
क़ासिद फकीर बन कर फिरना ,
पैकी बनना ,
इस किस्म के काम खुराफात है इन से इमाम हुसैन खुश नहीं !
( बहारे शरियत )
हज़रत कासिम की मेहन्दी निकलना ,
क़ासिद फकीर बन कर फिरना ,
पैकी बनना ,
इस किस्म के काम खुराफात है इन से इमाम हुसैन खुश नहीं !
( बहारे शरियत )
अशरा ए मुहर्रम में ताज़ियादार ,
कब्रो सूरत वगैरह बनाना जाएज़ नहीं !
(फ़तवा ए अजीजिया)
कब्रो सूरत वगैरह बनाना जाएज़ नहीं !
(फ़तवा ए अजीजिया)
मुहर्रम में ढोल बजाना इमाम हुसैन रज़ि0 के दुश्मन की पैरवी करना है , ढोल बाज़ा उनलोगो ने बजाया था !
किसी तरह ताज़ियादरी की मदद करना नाजायज़ है !
( फ़तवा ए अजीजिया )
किसी तरह ताज़ियादरी की मदद करना नाजायज़ है !
( फ़तवा ए अजीजिया )
ताज़ियादारी नाज़ायज़ है उसमे शिरकत जायज नहीं !
( फ़तवा ए रज़वीया - जिल्द- 16 )
( फ़तवा ए रज़वीया - जिल्द- 16 )
ताज़िया मुसलमानो की कोई ईद नहीं बल्कि जाहिलो ने इसे मौसम ए मातम बना रखा है !
( फतवा ए रज़वीया - ज़िल्द - 21)
( फतवा ए रज़वीया - ज़िल्द - 21)
ताज़िया बना के निकालना उसके साथ ढोल नगाड़े बजाना ,
क़बर की सूरत बनाकर जनाजे की तरह निकलना उसपर फूल वगैरह चढ़ाना नाज़ायज़ है !
*( फतवा ए रज़विया ज़िल्द - 24 )*
क़बर की सूरत बनाकर जनाजे की तरह निकलना उसपर फूल वगैरह चढ़ाना नाज़ायज़ है !
*( फतवा ए रज़विया ज़िल्द - 24 )*
मसला
अला हज़रत फरमाते है :
ताज़िया को हाजत रवा मुश्किल कुशा , बिगड़ी बनाने वाला समझना जहालत है, उस से मन्नत मांगना बेवकूफी है !
( रिसाला मुहर्रम ओ ताज़ियादारी )
अला हज़रत फरमाते है :
ताज़िया को हाजत रवा मुश्किल कुशा , बिगड़ी बनाने वाला समझना जहालत है, उस से मन्नत मांगना बेवकूफी है !
( रिसाला मुहर्रम ओ ताज़ियादारी )
सवाल - क्या मुहर्रम के महीने में शादी करना जाएज़ है या नहीं ??
जवाब - जाएज़ है !
(बहारे शरियत हिस्सा 16 , सफ़ा - 258 )
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जवाब - जाएज़ है !
(बहारे शरियत हिस्सा 16 , सफ़ा - 258 )
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मुसलमानों का अक़ीदा़ किे कुरान मोहम्मद सल्लल्लाहो अलयही वसल्लम पर अल्लाह की तरफ से उतरा है?
मुसलमान ये कैसे अक़ीदा रखते हैं की अल्लाह ने मुहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरान दया , क्यों की ये किसी ने नहीं देखा , हो सकता है उन्होंने अपनी तरफ से बनाया हो?
सवाल के लिए धन्यवाद।
मैं यह साबित करूंगा कि कुरान मुहम्मद (PBUH) को अल्लाह द्वारा दिया गया हे, यह खुद नहीं बनाया।
लॉजिक 1 - यदि मुहम्मद (PBUH) ने पवित्र कुरान लिखी होती, तो वह पुस्तक में हर जगह उसकी प्रशंसा करता। चूंकि अल्लाह ने पवित्र पुस्तक दी है, आप देखते हैं कि सभी प्रशंसा अल्लाह की हैं। केवल सच्चा खुदा ही इस तरह से खुद की प्रशंसा कर सकता हे.
लॉजिक 2. अगर मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखी होती, तो उसका उल्लेख इतने असहाय तरीके से नहीं किया जाता। हां, कुरान की कई आयतों में, आप देखेंगे कि मुहम्मद (PBUH) को अल्लाह की एक मात्र रचना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के लिए, सूरा दुहा इसे समझने के लिए पर्याप्त है। सूरह क़सस और कई अन्य सुरों से पता चला कि सारी शक्ति अल्लाह के हाथों में है।
लॉजिक 3 . अगर मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखी होती, तो वह लोगों को अल्लाह की नहीं बल्कि उनकी पूजा करने के लिए कहते।
लॉजिक 4. अगर मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखी होती, तो वे कई चीजों का उल्लेख नहीं कर सकते थे जो उस समय तक लोगों के लिए अज्ञात थी।
लॉजिक 5. अगर मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखी होती, तो वह अपने पूरे जीवनकाल में लगभग सभी किताबों को सोचने और लिखने में लगे रहते।
लॉजिक 6 . यदि मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखा था, तो कुरान के छंदों में जो साहित्य और लहजे का इस्तेमाल किया गया था, वह उसी की प्रामाणिक हदीस के समान होगा।
लॉजिक 7. यदि मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखा था, तो वह भविष्य के बारे में बहुत सारी चीजों का उल्लेख नहीं कर कर पातेजो अब आधुनिक तकनीक की प्रगति के साथ एक-एक करके साबित हो रहे हैं।
लॉजिक 8 . यदि मुहम्मद (PBUH) ने कुरान लिखा होता, तो उनका नाम अन्य नबियों की तुलना में पुस्तक में सबसे अधिक बार प्रस्तुत किया गया होता। वास्तव में, मूसा के नाम का उल्लेख मुहम्मद से अधिक है।
सभी नबियों पर सभी खुलासे कमोबेश इसी तरह के थे। और किसी ने नही देखा तो इसका मतलब यह नहीं है कि यह सच नहीं है।
अगर मैं तुम्हें पत्थर मारता और तुम्हारे शरीर पर कोई जख्म नहीं आता, तो क्या तुम मानोगे कि मारना सही नहीं था। आपके दर्द से पता चलेगा कि आप किसी चीज़ से प्रभावित थे।
उसी तरह, कुरान की पहली आयत के पहली आयत के नुज़ूल के वक़्त, हज़रत जिब्राईल फ़िरश्ते ने हमारे नबी को बहुत तेजी से गले लगाया था ,और ये हर कोई देख सकता था की वो किसी चीज़ से चौंके हुए थे .
और हर कोई इसका परिणाम जानता है - और वो क़ुरान हे।
इसलिए, किसी को भी नासमझ अवधारणाओं से मूर्ख नहीं बनाया जाना चाहिए , जैसे कुरान मुहम्मद (PBUH) द्वारा लिखी गई थी। ये मूर्ख बनाना हे।
कोई भी प्राणी कुरान जैसी शानदार चीज़ नहीं बना सकता और अल्लाह कुरान में भी इसकी चुनौती देता है।
और यहाँ अंत नहीं है। यदि आप कुरान को पर्याप्त ज्ञान के साथ सही ठहराते हैं, तो आप देखेंगे कि कुरान जैसी पुस्तक बनाना असंभव है। यह बरकरार है और हमेशा की तरह होगा क्योंकि अल्लाह ने खुद ऐसा करने की जिम्मेदारी ली है। क्यों कि अल्लाह ने कुरान में फरमाया - (انا نحن نزلنا الذكر وإنا له لحافظون ) बेशक हम ने क़ुरान उतरा और हम ही इसकी रक्षा करने वाले हैं-
मुहम्मद रागिब
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यह वह लोग हैं जो इस्लाम को नहीं मानते क्योंकि इस्लाम को मानने का अर्थ है जमीन में फसाद ना चाहना, जमीन में बगावत ना करना।
क़ुरआन की इस आयत को सुनिए:
((تلك الدار الآخرة نجعلها للذين لا يريدون علواً في الأرض ولا فساداً، والعاقبة للمتقين)) [القصص/ 83]
अनुवाद : और वह जो आख़िरत का घर है हमने इसे उन लोगों के लिए तैयार किया है, जो भूमि में अन्याय और भ्रष्टाचार करने का इरादा नहीं रखते हैं, और अंत तो परहेज़गारों के लिए हे।
इस का मतलब है की वह लोग जो देश में , ज़मीन में , फसाद मचाते हैं , उनका ठिकाना जहन्नम है , वो लोग इस्लाम की तालीम पे अमल नही करते हैं , बल्कि इस्लाम के लिबादे में इस्लाम को बदनाम करते हैं.
आयए में आपको क़ुरआन की एक और ऐसी आयत दिखाता हो जिस से आपके रोंगटे खड़े हो जाएँ गए , और आप खुद कहेंगे की आतंगबाद का इस्लाम से कोई लेना देना नही हे ,बल्कि कुछ संगठन इस्लाम को बदनाम करना चाहते हैं,
क़ुरआन कहता है:
((ولا تبغ الفساد في الأرض إن الله لا يحب المفسدين. ))[القصص/ 77].
अनुवाद: ज़मीन में या मुल्क में फसाद न चाहो इसलिए की फ़साद करने वाले अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा नहीं हैं.
आईये आपको एक क़ुरान की ऐसी आयत दिखाता हूँ जो अपने शायद पहले नहीं सुनी हो , जिस को पढ़ कर आपको इस्लाम का सही अर्थ और उसकी हक़ीक़त का पता चले गा.
क़ुरआन कहता है:
(source of this ayah translation only )
अनुवाद: इसी वजह से हमने बनी इस्राइल पर (नाज़िल की गई तौरात में यह आदेश) लिख दिया (था) कि जिसने किसी व्यक्ति को बिना किसास के या ज़मीन में फसाद (फैलाने अर्थात खूँ रेज़ी और डाका जनी आदि की सजा) के (बिना हक़) क़त्ल कर दिया तो गोया उसने (समाज के) सारे लोगों को कत्ल कर दिया और जिसने उसे (नाहक मरने से बचा कर) जीवित रखा तो गोया उसने (समाज के) सारे लोगों को जीवित रखा (अर्थात उसने इंसानी जीवन का सामूहिक निज़ाम बचा लिया), और बेशक उनके पास हमारे रसूल स्पष्ट निशानियाँ ले कर आए फिर (भी) उसके बाद उनमें से अक्सर लोग यक़ीनन ज़मीन में हद से आगे बढ़ने वाले हैंl (सुरह मायदा ५:३२)
आप खुद देख लीजिए इंसाफ की नज़र से और इन आयात का इंग्लिश अनुवाद भी देख लीजिये , क़ुरान ने कितने स्थान पे ज़मीन और समाज में फसाद करने से मना क्या हे , तो वो लोग जो मासूमों को क़तल करते हैं उनका इस्लाम से कोई ताल्लुक़ नहीं है , और जो उनको देख कर इस्लाम पे ऊँगली उठा रहा है तो इसका मतलब है उसने इस्लाम को नही पड़ा हे.
पढ़ने के लिए धन्यवाद , में आप से शेयर करनेे नही कहूंगा.
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आतंकवाद और इस्लाम?
क़ुरआन की इस आयत को सुनिए:
((تلك الدار الآخرة نجعلها للذين لا يريدون علواً في الأرض ولا فساداً، والعاقبة للمتقين)) [القصص/ 83]
अनुवाद : और वह जो आख़िरत का घर है हमने इसे उन लोगों के लिए तैयार किया है, जो भूमि में अन्याय और भ्रष्टाचार करने का इरादा नहीं रखते हैं, और अंत तो परहेज़गारों के लिए हे।
इस का मतलब है की वह लोग जो देश में , ज़मीन में , फसाद मचाते हैं , उनका ठिकाना जहन्नम है , वो लोग इस्लाम की तालीम पे अमल नही करते हैं , बल्कि इस्लाम के लिबादे में इस्लाम को बदनाम करते हैं.
आयए में आपको क़ुरआन की एक और ऐसी आयत दिखाता हो जिस से आपके रोंगटे खड़े हो जाएँ गए , और आप खुद कहेंगे की आतंगबाद का इस्लाम से कोई लेना देना नही हे ,बल्कि कुछ संगठन इस्लाम को बदनाम करना चाहते हैं,
क़ुरआन कहता है:
((ولا تبغ الفساد في الأرض إن الله لا يحب المفسدين. ))[القصص/ 77].
अनुवाद: ज़मीन में या मुल्क में फसाद न चाहो इसलिए की फ़साद करने वाले अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा नहीं हैं.
आईये आपको एक क़ुरान की ऐसी आयत दिखाता हूँ जो अपने शायद पहले नहीं सुनी हो , जिस को पढ़ कर आपको इस्लाम का सही अर्थ और उसकी हक़ीक़त का पता चले गा.
क़ुरआन कहता है:
مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِي الْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ ﴿٣:۵﴾
अनुवाद: इसी वजह से हमने बनी इस्राइल पर (नाज़िल की गई तौरात में यह आदेश) लिख दिया (था) कि जिसने किसी व्यक्ति को बिना किसास के या ज़मीन में फसाद (फैलाने अर्थात खूँ रेज़ी और डाका जनी आदि की सजा) के (बिना हक़) क़त्ल कर दिया तो गोया उसने (समाज के) सारे लोगों को कत्ल कर दिया और जिसने उसे (नाहक मरने से बचा कर) जीवित रखा तो गोया उसने (समाज के) सारे लोगों को जीवित रखा (अर्थात उसने इंसानी जीवन का सामूहिक निज़ाम बचा लिया), और बेशक उनके पास हमारे रसूल स्पष्ट निशानियाँ ले कर आए फिर (भी) उसके बाद उनमें से अक्सर लोग यक़ीनन ज़मीन में हद से आगे बढ़ने वाले हैंl (सुरह मायदा ५:३२)
आप खुद देख लीजिए इंसाफ की नज़र से और इन आयात का इंग्लिश अनुवाद भी देख लीजिये , क़ुरान ने कितने स्थान पे ज़मीन और समाज में फसाद करने से मना क्या हे , तो वो लोग जो मासूमों को क़तल करते हैं उनका इस्लाम से कोई ताल्लुक़ नहीं है , और जो उनको देख कर इस्लाम पे ऊँगली उठा रहा है तो इसका मतलब है उसने इस्लाम को नही पड़ा हे.
पढ़ने के लिए धन्यवाद , में आप से शेयर करनेे नही कहूंगा.
मुहम्मद रागिब
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इस्लाम धर्म में नमाज़ पढ़ना कब से शुरू हुआ?
इस्लाम धर्म में नमाज़ हिजरत( इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मक्का से मदीने को अल्लाह के हुक्म से जो यात्रा की वह हिजरत है) से 5 साल पहले (इस्रा और मेराज ) की रात को फ़र्ज़ हुई थी, नमाज़ का हुक्म इस्लाम के शुरुआती दिनों में (वुजूब) था. फिर 5 समय की फ़र्ज़ हो गयी.
शुरू में हर महीने 3 दिन के उपवास का हुक्म दया गया था , इसी तरह 2 रकत दोपहर और 2 रकत शाम को हुक्म दया गया था, फिर बाद में 1 महीने के रोज़े और 5 समय की नमाज़ फ़र्ज़ हो गयी
(तफ़्सीर तबरी)
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عن عمر رضي الله :أنه جاء إلى الحجر الأسود فقبله فقال إني أعلم أنك حجر لا تضر ولا تنفع ولولا أني رأيت النبي صلى الله عليه وسلم يقبلك ماقبلت. (رواه البخاري)
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इस्लाम में नमाज़ पढ़ना कब से शुरू हुआ?
इस्लाम धर्म में नमाज़ पढ़ना कब से शुरू हुआ?
इस्लाम धर्म में नमाज़ हिजरत( इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मक्का से मदीने को अल्लाह के हुक्म से जो यात्रा की वह हिजरत है) से 5 साल पहले (इस्रा और मेराज ) की रात को फ़र्ज़ हुई थी, नमाज़ का हुक्म इस्लाम के शुरुआती दिनों में (वुजूब) था. फिर 5 समय की फ़र्ज़ हो गयी.
शुरू में हर महीने 3 दिन के उपवास का हुक्म दया गया था , इसी तरह 2 रकत दोपहर और 2 रकत शाम को हुक्म दया गया था, फिर बाद में 1 महीने के रोज़े और 5 समय की नमाज़ फ़र्ज़ हो गयी
(तफ़्सीर तबरी)
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समाज में क्या गलत हो रहा है?
मेरे हिसाब से जो गलत हो रहा है उसको में यहां बयान कर रहा हूं , अगर इस सब को नहीं रोका गया तो समाज के साथ साथ देश भी पीछे चला जाये गा, समाज किस को कहते हैं , उसकी परिभाषा क्या है
समाज - एक बड़ा सामाजिक समूह है जो एक ही भौगोलिक या सामाजिक क्षेत्र को साझा करता है.
वो चीज़ें जो ग़लत हो रही हैं ———————————-
- लिव इन रिलेशनशिप (living relationship before marriag)
- प्रेमिका प्रेमी (Girl friend Boy friend)
- बच्चो का मोबाइल प्रयोग करना.
- PUBG का प्रयोग और उसकी लत.
- TikTok का प्रयोग और उसकी लत.
- QPP के लालच में QUORA पे पूरा दिन बिताना.
अगर पसंद आया हो तो अपवोट करें ख़ुशी मिलेगी.
धन्यबाद.
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हजरे अस्वद को क्यों चूमा जाता है
عن عمر رضي الله :أنه جاء إلى الحجر الأسود فقبله فقال إني أعلم أنك حجر لا تضر ولا تنفع ولولا أني رأيت النبي صلى الله عليه وسلم يقبلك ماقبلت. (رواه البخاري)
हजरत उमर रदि अल्लाह अनहु से रिवायत है:" कि वो हजरे अस्वद के पास आए और उसको चूमा और बोले : बेशक मैं जानता हूं कि तू पत्थर है जो ना नुकसान दे सकता है ना फायदा पहुंचा सकता है , और अगर मैंने नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को तुझे चूमते हुए ना देखा होता तो मैं तुझे ना चूमता।
(अल बुखारी)
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(अल बुखारी)
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